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नवयुग की ओर
#जंजीर
इन जंजीरों को तोड़कर,
रुख हवा का मोड़कर,
चल रहे हैं देखो हम।
पतवार तूफ़ानों को सौंपकर,
आँधियों से दोस्ती कर,
खे रहे हैं नाव देखो हम।
मार्ग की बाधाओं को पारकर,
पाँव के काँटें निकालकर,
गंतव्य-पथ पर बढ़ रहे हैं देखो हम।
पत्थरों को काटकर,
पर्वतों का सीना चीरकर,
नई राहों का निर्माण कर रहे हैं देखो हम।
अंधविश्वास को त्यागकर,
भेदभाव सारे मिटाकर,
एकता की कड़ियाँ जोड़ रहे हैं देखो हम।
जो हो गया उसे भूलकर,
अतीत की गिरफ़्त से निकलकर,
नवयुग की ओर दौड़ रहे हैं देखो हम।
- दुर्गाकुमार मिश्रा
© दुर्गाकुमार मिश्रा
इन जंजीरों को तोड़कर,
रुख हवा का मोड़कर,
चल रहे हैं देखो हम।
पतवार तूफ़ानों को सौंपकर,
आँधियों से दोस्ती कर,
खे रहे हैं नाव देखो हम।
मार्ग की बाधाओं को पारकर,
पाँव के काँटें निकालकर,
गंतव्य-पथ पर बढ़ रहे हैं देखो हम।
पत्थरों को काटकर,
पर्वतों का सीना चीरकर,
नई राहों का निर्माण कर रहे हैं देखो हम।
अंधविश्वास को त्यागकर,
भेदभाव सारे मिटाकर,
एकता की कड़ियाँ जोड़ रहे हैं देखो हम।
जो हो गया उसे भूलकर,
अतीत की गिरफ़्त से निकलकर,
नवयुग की ओर दौड़ रहे हैं देखो हम।
- दुर्गाकुमार मिश्रा
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