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रोशनाई मुहब्बत की
रोशनाई मुहब्बत की
उकेरने लगी हूं अब सूरत तेरी
अब तक छुपि गुम थी तू
दिल की इन धड़कनों से मेरी

अहसास ये झील की ठंडक से
डुबने को बार बार दिल ये चाहे
बन गया मैं इक चकोर सा चांद को ही चाहे
टुटती नहीं इक पल को नजर दास्तान बन जाए

अब तक जिंदगी, जिंदगी न थी बेमानी थी
सफर के आगाज बन गए हैं अब रसीले
सोचा न था मिल जाएंगे दो पल हंसते नशीले
अंदाज मिटा जाते तकलीफें, पिलाते हैं भर प्याले

इश्क इक बुलंदी है मस्ताने दिलों की
इक रस दिलो का रग-रग में भरता जाए
झुठी दुनियां के जहर में डुब न जाना ऐ दिल
बांध लो ऐसे बंधन खुले न, कभी बिखर न पाए


© सुशील पवार