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'स्वप्न की सौंदर्य छवि'
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मन तरंग में उमड़ती छवि
कल्पनाओं में संग उड़ान भरूँ
सौंदर्य में परियों की कहानी सी
रात दिन उसकी ही आस धरूँ
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एक ज्योत जो तिलिस्म करती
असंख्य जुगनुओं से वो बनी
आभा सवेरे सी शीतल करती
चांदनी की धार जैसे बहती
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बातों में संगीत की मधुर
सप्त स्वरों की धुन गले में अटकी
नृत्य करती पास आ रही
कला चाल में नजरें हैं लटकी
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विस्मृत देता स्वयं को
खो जाता मुस्कान में उसकी
सुध बुध सब स्थिर गया
मूर्त हो स्वप्न में उसकी
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©विकास शाही
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