...

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बन्धन
तन को बंधन में सब करें
मन कूँ करे ना कोए
जो मन कूँ बंधन करे
तो दुःख काहे को होए

तन के काजे घर बहु पड़े
मन के काजे जग कम पड़ जाये
जो मन कु घर में रखे
तो दुःख काहे को होए

तन बिगड़े सबकु दिखे
मन बिगड़े जाने ना कोए
जो मन कु बांधे रखे
तो दुख काहे को होए

तन कु संयम में करत फिरे
मन पे संयम नाहि कोये
जो मन पे संयम रखे
तो दुःख काहे को होए

पाप कूँ तन से धोवत फिरे
मन कूँ छोड़ दियो आज़ाद
उल्टा जगत में करत फिरे
तो सुख कहाँ से होए

मन कूँ दोषी जान ले
भावन पे जो ध्यान धर ले
वही जीव सुख सुकून पा जावे
फिर दुःख काहे को होए