रंग...ज़िन्दगी के
रंग कहाँ हैं ख़ाबों के, गए हैं जैसे कोई रंग सुबह की
रात बड़ी ये लंबी है, पर दिखे न कोई रंग सुबह सी
ज़र्रा ज़र्रा हैरां है, क्यों चारों तरफ़ ये पहरा है
बहुत ज़रूरी ये भी हैं, सो...
रात बड़ी ये लंबी है, पर दिखे न कोई रंग सुबह सी
ज़र्रा ज़र्रा हैरां है, क्यों चारों तरफ़ ये पहरा है
बहुत ज़रूरी ये भी हैं, सो...