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मन मौन व्रत कर अपराध करता है
#अपराध
मन मौन व्रत कर अपराध करता है
किस भांति देखो आघात करता है
व्यंग पर गंभीरता का प्रहार करता है
मन मौन व्रत कर अपराध करता है
नजाने मन किस बात से डरता है
अपनो के बस्ती में खुद को तन्हा रखता है
क्यों हर ज़ख्म को निर्विरोध करता है
मन मौन व्रत कर अपराध करता है
क्यों अपने ज़ख़्म-ए-दिल वो छुपाता है
क्यों राज़-ए-दिल वो बयां नहीं करता है
ग़ालिबन होंगे ये प्रहार अपनो के
इसीलिए वो
मन मौन व्रत कर अपराध करता है
ये गुनाह है अगर,तो ये गुनाह कबूल करता है
अपनो से पराजित होना,ये कबूल करता है
बस अपनो के लिए वो हमेशा
मन मौन व्रत कर अपराध करता है
© Amus Singku
मन मौन व्रत कर अपराध करता है
किस भांति देखो आघात करता है
व्यंग पर गंभीरता का प्रहार करता है
मन मौन व्रत कर अपराध करता है
नजाने मन किस बात से डरता है
अपनो के बस्ती में खुद को तन्हा रखता है
क्यों हर ज़ख्म को निर्विरोध करता है
मन मौन व्रत कर अपराध करता है
क्यों अपने ज़ख़्म-ए-दिल वो छुपाता है
क्यों राज़-ए-दिल वो बयां नहीं करता है
ग़ालिबन होंगे ये प्रहार अपनो के
इसीलिए वो
मन मौन व्रत कर अपराध करता है
ये गुनाह है अगर,तो ये गुनाह कबूल करता है
अपनो से पराजित होना,ये कबूल करता है
बस अपनो के लिए वो हमेशा
मन मौन व्रत कर अपराध करता है
© Amus Singku
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