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...वक्त था के बस यूं ही निकलता रहा...
शाम होती गई दिन ढलता रहा
वक्त था के बस यूं ही निकलता रहा
साथ मिलकर तेरे जी लेने को,
जाम, तेरी आंखों का पी लेने को
तलब लगती रही, ज़ी मचलता रहा
वक्त था के बस यूं ही....
नींद आती रही , ख़्वाब आते रहे
तुम आए नहीं, हम मनाते रहे
दर्द इक था यही, जो पलता रहा
वक्त था के बस यूं ही....
तन्हाई थी मंजिल जिस राह की,
बन मुसाफिर मैं बस उसी राह का,
चलता रहा, मैं चलता रहा.…
शाम होती गई, दिन ढलता रहा
वक्त था के बस यूं ही निकलता रहा
© @mr.rupeshkumar
वक्त था के बस यूं ही निकलता रहा
साथ मिलकर तेरे जी लेने को,
जाम, तेरी आंखों का पी लेने को
तलब लगती रही, ज़ी मचलता रहा
वक्त था के बस यूं ही....
नींद आती रही , ख़्वाब आते रहे
तुम आए नहीं, हम मनाते रहे
दर्द इक था यही, जो पलता रहा
वक्त था के बस यूं ही....
तन्हाई थी मंजिल जिस राह की,
बन मुसाफिर मैं बस उसी राह का,
चलता रहा, मैं चलता रहा.…
शाम होती गई, दिन ढलता रहा
वक्त था के बस यूं ही निकलता रहा
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