...

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खूबसूरती तो है!
खूबसूरती तो है!

बचत भी करूं पैसे की?
यह तो आता है और जाता है!
फिर सारी चिंताओं का कारण;
करीबियों से दुश्मनी देता
जरूरत से ज्यादा है ।
खूबसूरती तो है!

क्या करूंगी ज्ञान लेकर ?
फूली फिरती रहूं ?
गाली दे तो चुप गूंगी रहूं ?
अंदर ही अन्दर घूंट घूंट मरती रहूं?
ना बाबा ना, क्या फायदा है !
खूबसूरती तो है!

इज्जत तो है इक लिज्जत का पापड़,
कोई भी खा लेता है , रोब जमा लेता है!
पर रोब का जमाना तो रहा ही कहां है?
साइन बोर्ड भी तो लगता नहीं !
ये क्या जीने का वायदा है ?
खूबसूरती तो है !


इससे तो अच्छा है
ये सुंदर-सा मिला चोला :
भर ही जाता है एक छोटा-मोटा झोला,
कुछ देखकर ही कहते- हाय;
बैठते हैं ज्ञानी सट-सटकर,
इज्जत भी मिलती बकायदा है!
खूबसूरती जो है!!


© शैलेंद्र मिश्र 'शाश्वत' १४/०३/२०१३