मुझे तुम आम रहने दो
मुझे तुम आम रहने दो
यूंही बे-नाम रहने दो
जरूरत ही नही कोई
मुझे महताब कहने की
सुहाना ख़्वाब कहने की
के थर मई आब कहने की
मुझे मगरूर कर देगी
खुदी से चूर कर देगी
तुम्हारी ये शायरी और गज़ले
मुझे मगरूर...
यूंही बे-नाम रहने दो
जरूरत ही नही कोई
मुझे महताब कहने की
सुहाना ख़्वाब कहने की
के थर मई आब कहने की
मुझे मगरूर कर देगी
खुदी से चूर कर देगी
तुम्हारी ये शायरी और गज़ले
मुझे मगरूर...