...

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सच कहना....
किस बात का आखिरकार गुरूर हैं तुम्हें..?
अपने ज्ञान का
या फ़िर अपने कलम का...!..?

चांद की रोशनी कों
शब्दों से तों काग़ज़ के सीने में,
उतार देते हों तुम ...!

पर क्या..?
उसके दाग कों भीं,
अपनाने का साहस हैं तुममें...?


© it's me sangita 💙