...

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“खुदकुशी मात्र सलीका नहीं, खुद को समझाने का"
उसकी नजरों से बचाकर, मुझे रखोगे कहां,
नब्ज़ो में दौड़ता है, हर कतरा उसके नाम का,,

ये पहरों पे पेहरे, बे-फिजूल है साथियों,
कोई अंदर ही मार देगा, शख्स उसके नाम का,,

जज्बात में आके, कोई फैसला ना करना हमारी तरफ,
लटका देना हमें, मान रखना उसके एलान का,,

खुदकुशी मात्र सलीका नहीं, खुद को समझाने का,
दिल थम भी जाता है, सुनकर, एक लब्ज़ उसके जुबान का,,

सुकूं बेच डाला मैंने, वेमुरव्वत के साथ मिलकर,
फकत अमान मे है दर्द, जो तोफा है उस मेहरबान का,,

और स्याही को, गढ़ा दूं अगर, समझके पन्ना ईमान का,
कपिल मिट जाए वजूद तेरा, सब्र पूरा हो, उसके इंतकाम का....
© #Kapilsaini