...

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निस्वार्थ
#जाने-दो..!
जाने दो जो चला गया,
मृगछालों से जो ठगा गया,
बेवक्त जो वक्ता बना गया,
अपनों से भी तो ठगा गया,

कुछ पल की खुशियां जिसे मिली,
उन खुशियों से भी छला गया,
गम तो है उसके जाने का ,
इंसान क्यों ऐसा भला गया ?

थे आंखों में जो ख्वाब कईं,
दिल में भी थे जो राज कईं,
कुछ चाहत दिखलाकर उसको,
लूटा अपनों ने बार कईं,

मासूम कहूं या अनजाना,
पागल कहूं या दीवाना,
बड़ों की खुशी के लिए उसने,
खुशियां ठुकराई बार कईं,

अपने जीवन को समर्पित,
उसने अपनों के नाम किया ,
जिया कहां वो जीवन को ?
फिर भी जग ने बदनाम किया .......



© Munni Joshi