...

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चांद
आज खफ़ा था चांद हमसे
न जाने क्यों रूठा था,
या तो की थी हमने कोई नादानी
या दिल उसका टूटा था,
पूछा जो हमने उससे ये सवाल
तो गुस्से से चीखा वो,
सायद कर दी थी हमने ही कोई नादानी
वरना यूं तो कभी न रूठा था वो,
कहने लगा,
सुनना ज़रा,
एक खिड़की से झगड़ा है मेरा
रोज तोहीन मेरी है करता वो,
वो ताकता है तुझको
तुझको ही चांद बताता वो,
नूर तेरे चेहरे का
मुझमें है दाग बताता वो,
और कभी दो पल करता भी बात मुझसे
तो तेरी ही बात बतियाता वो,
सुनी जो बात चांद की
हां थोड़ा सा तो इतराई मैं,
ओह तो ये थी खता हमारी
अपनी हसीं रोक न पाई मैं,
फिर थोड़ा सा समझाया चांद को
उस खिड़की से introduce कराया उसे,
कहा ज़रा सी नादान है वो खिड़की
थोड़ा नादानी कर बैठी है,
जो चांद की खूबसूरती को छोड़
एक मामूली पत्थर पर मर बैठी है,
चलो वो तो नादान था
उसने जो किया सो किया,
तुमने उसका बदला हमसे क्यों लिया,
चलो छोड़ो अब ये सब जाने देते है
क्यों झगड़ना इस बात पर
इस लड़ाई को यहीं खत्म करते है।

© t@nnu