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रणभूमि कुरुक्षेत्र
द्यूतक्रीड़ा, प्रपंच हो
लाक्ष्यागृह, षणयंत्र हो,
हो अधर्म का वर्चस्व
अधिकारों का प्रश्न हो।
वीर का प्रमाण दो,
युद्ध को ललकार दो।
रणभूमि कुरुक्षेत्र में,
विजयश्री दहाड़ दो।
चेतना का ह्वास हो,
आडंबरों का वास हो।
विनाशलीला प्रचंड हो
असत्य का प्रचार हो।
सिंह गर्जना करो,
गजराज बन चिंघाड़ दो।
सत्य मार्ग प्रसस्त को,
अनंत दुर्ग उखाड़ दो।
दावानल की आग हो,
सागर, उद्दंड हो।
वायु,तीक्ष्ण प्रहार दे,
पर्वत, नृशंस हो।
पथभ्रष्ट हो नही,
लक्ष्य को तुम थाम लो।
कर दृढ संकल्प तुम
तृण,समझ रौंद दो।
भीषण भीष्म प्रण कर,
कोदंड को हुँकार दो,
कर्त्तव्यपथ,अवरोधक
हर सम्बन्ध, नकार दो।
नृपति के मौन को
मृदंग पर,ठोंक दो।
राष्ट्रहित के लिए
भाग्य, भी तुम मोड़ दो।
#Poetizer #indians
लाक्ष्यागृह, षणयंत्र हो,
हो अधर्म का वर्चस्व
अधिकारों का प्रश्न हो।
वीर का प्रमाण दो,
युद्ध को ललकार दो।
रणभूमि कुरुक्षेत्र में,
विजयश्री दहाड़ दो।
चेतना का ह्वास हो,
आडंबरों का वास हो।
विनाशलीला प्रचंड हो
असत्य का प्रचार हो।
सिंह गर्जना करो,
गजराज बन चिंघाड़ दो।
सत्य मार्ग प्रसस्त को,
अनंत दुर्ग उखाड़ दो।
दावानल की आग हो,
सागर, उद्दंड हो।
वायु,तीक्ष्ण प्रहार दे,
पर्वत, नृशंस हो।
पथभ्रष्ट हो नही,
लक्ष्य को तुम थाम लो।
कर दृढ संकल्प तुम
तृण,समझ रौंद दो।
भीषण भीष्म प्रण कर,
कोदंड को हुँकार दो,
कर्त्तव्यपथ,अवरोधक
हर सम्बन्ध, नकार दो।
नृपति के मौन को
मृदंग पर,ठोंक दो।
राष्ट्रहित के लिए
भाग्य, भी तुम मोड़ दो।
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