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ख़्वाहिशों का बक्सा
ज़िंदगी अधूरी ख़्वाहिशों का बक्सा है।
भरना चाहते हम अपने मुताबिक़ ॥
कुछ सहेज पाते हैं कुछ छूट जाते हैं,
कुछ तो करना चाहते हैं हर हाल में हासिल ॥
लाख जतन के बाद भी कुछ ना मिले ,
हज़ार बार समझाते हैं ,बहलाते हैं अपना दिल।
पर कहाँ भर पाते हैं सब अपने मुनासिब ॥
आख़िर में अलब्ध सारणी का मंजूषा है ।
ज़िंदगी अधूरी ख़्वाहिशों का बक्सा है।
© Ritu Verma ‘ऋतु’
भरना चाहते हम अपने मुताबिक़ ॥
कुछ सहेज पाते हैं कुछ छूट जाते हैं,
कुछ तो करना चाहते हैं हर हाल में हासिल ॥
लाख जतन के बाद भी कुछ ना मिले ,
हज़ार बार समझाते हैं ,बहलाते हैं अपना दिल।
पर कहाँ भर पाते हैं सब अपने मुनासिब ॥
आख़िर में अलब्ध सारणी का मंजूषा है ।
ज़िंदगी अधूरी ख़्वाहिशों का बक्सा है।
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