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रक्तरंजित ही चल पड़ी वो
रक्तरंजित ही चल पड़ी वो

महादेव की पावन धरती पर,
हरकत ये कैसी नापाक हुई,
दरिंदगी का तो दौर है साहब,
लेकिन इंसानियत तार तार आज हुई।
12 साल की बेटी थी वो,
पीड़िता उसका नया नाम होगा,
किसी से मिलकर सहम ही जाना,
अब उसका रोज का काम होगा।
दरिंदगी झेल सड़क पर पड़ी वो,
रक्तरंजित ही फिर चल पड़ी वो,
कैसे न खुले द्वार घर के तुम्हारे,
किया इन्तेजार हर द्वार खड़ी वो।
हर पल कितना उसका भारी होगा,
हर कदम उसे कितना बल लगा होगा,
भैया, भाभी, चाचा, चाची,
पुकारना भी उसे छल लगा होगा।
पड़ी बेसुध अस्पताल में ऐसे,
8 किलोमीटर लगे कई जन्म हो जैसे,
मदद की करती रही बेचारी पुकार,
न आया कोई नर, न नारायण की सार।
भले वो दुर्जन कभी पकड़ा जाएगा पर,
उस मासूम को अब ख़ाक न्याय मिल पायेगा,
छलनी शरीर शायद भर भी जाएं उसके,
दोहरे मार से क्या उसका मन कभी उभर पायेगा।


© ✍️शैल