दास्तां -ए - ज़िंदगी
मैने सन्नाटे की आवाज सुनी है। जब कोई पास ना हो तो अंधेरे से बात करी है। कभी तो खुद को ख़तम करने की कोशिश करी है। कभी माना खुद को गलत और सबको सही है।
कभी सोचती की मुझमे क्या कमी है, तो कभी लगता की बस कमी हि कमी है। नहीं समझ पाती थी क्या गलत क्या सही है। और हर त्योहार मे भी हुआ मन दुखी है।
वो भी एक वक़्त था जब बस आंसु और खामोशी से हि मेरी रात सजि थी, पूछती थी खुद से की सब होते हुए भी साथ क्यों नहीं है।
बुरा वक़्त...
कभी सोचती की मुझमे क्या कमी है, तो कभी लगता की बस कमी हि कमी है। नहीं समझ पाती थी क्या गलत क्या सही है। और हर त्योहार मे भी हुआ मन दुखी है।
वो भी एक वक़्त था जब बस आंसु और खामोशी से हि मेरी रात सजि थी, पूछती थी खुद से की सब होते हुए भी साथ क्यों नहीं है।
बुरा वक़्त...