...

4 views

दास्तां -ए - ज़िंदगी
मैने सन्नाटे की आवाज सुनी है। जब कोई पास ना हो तो अंधेरे से बात करी है। कभी तो खुद को ख़तम करने की कोशिश करी है। कभी माना खुद को गलत और सबको सही है।

कभी सोचती की मुझमे क्या कमी है, तो कभी लगता की बस कमी हि कमी है। नहीं समझ पाती थी क्या गलत क्या सही है। और हर त्योहार मे भी हुआ मन दुखी है।

वो भी एक वक़्त था जब बस आंसु और खामोशी से हि मेरी रात सजि थी, पूछती थी खुद से की सब होते हुए भी साथ क्यों नहीं है।

बुरा वक़्त जैसा भी हो बीत जाता हैं, ये सुन के लगा की ये बात मेरे साथ सच क्यों नहीं है। नही पता था जाना कहाँ है, और ना जाने ज़िंदगी कहाँ जा रही है।

लेकिन सच है ये बात की हर अंधेरे में कहीं कोई रोशनी छुपी है। नहीं दिख रही मुझे शायद मेरे ढूंढ़ने में कमी है।

पता नहीं कहाँ और कैसे मेरे अंधेरे वीरान इलाके मे किसी की आहट सुनाई पड़ी है। जिसने कानो मे कहा मुझसे की पहाड़ो मे चलो जीवन का सुकून तो बस वहीं है।

भरोसा करने की आदत ने फिर किसी अनजान को हामी भरी है।

पर नहीं जानती थी की, सच मे ये भरोसा सही है। हाथ पकड़ किसी ने खींचा है अंधेरे गुफा से, क्यूंकि ये अकेले मुमकिन नहीं है।

और अब सच तो ये है की खामोशी अब उस गुफा में अकेली खड़ी है।
© Unnati