...

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कौन कौन...
ये भी है इक नशा , मुझे पढ़ता है कौन कौन
मेरी सोच वाली सीढ़ी ,चढ़ता है कौन कौन

ग़र हवा के झोंके सा शायर का है ख़याल
मुट्ठी में अपनी देखें ,पकड़ता है कौन कौन

घुमड़ते हुए से बादल,तो आयें कई नज़र
मुद्दे की बात ये है ,उमड़ता है कौन कौन ..
© Ashish Morya