क़लम ए ख्यालात
इस नज़र को बस तेरा इंतज़ार हैं
तेरे मिलने की उम्मीद पर बड़ा ऐतबार हैं
तलब ओ हसरत का खेल आहिस्ता बढ़ रहा
कोई पैगाम तो भेजों अगर तुमको प्यार हैं
रातों में चल रहा इक तेरे ख्वाबों का सिलसिला
दिल इन ख्वाबों को हकीकत बनानें कों तैयार हैं
जबरदस्ती से इश्क मांगना फितरत नहीं हमारी
बस बैठे तेरी यादों में यूं ही हम बेकरार हैं
तेरे जिस्म की कशिश से हम फ़िदा नहीं हुए
बस समझलो यूं कि सादगी ओ दिल पर तेरे हम निसार हैं
हर दिन यूं ही बीत जाता हैं तेरी यादों के संग
और ज़िंदगी में बन रहीं दर्दों की क़तार हैं
आज़ मिलते नहीं चाहने वालें आसानी से
हर कोई बस उम्मीदों की सफ़ीना पर सवार हैं
मिलें अगर प्यार करने वाला कोई तो खोना मत उसको
क्योंकी यहां मिलते नहीं फरिश्ते हज़ार हैं
दर-ब-दर यहां बैठें हैं झूठ का लिबास ओढ़े कई
उस झूठ के पीछे छुपा राज बेकार हैं
कुछ रिश्ते अहमियत के सबब से जुदा होते हैं
कुछ रिश्ते यहां गलतफहमियों के शिकार हैं
इकतरफा इश्क में सच्चाई होती हैं अक्सर
और दोतरफा इश्क़ में झूठे वादों के अधिकार हैं
जब हैसियत नहीं होती वफ़ा निभानें की जिनकी
फ़िर करते झूठे अश्कों और वादों के यलगार हैं
यूं ही कलम ली हाथों में और उतर गए ज़माने के मंज़र
जो भी रिश्ता बनें वो रूहानी हों,बस इसी के हम तलबगार हैं
क्यों देना अश्क किसी की आंखों में दगा से
जब बैठीं तेरी वफ़ा की उम्मीद पर करके वो श्रृंगार हैं
समझ लेना अंतर जिस्मानी हवस और प्यार में
फ़िर समझ आ जाएगा ज़िंदगी में मोहब्बत का क्या सार हैं
-उत्सव कुलदीप
© utsav kuldeep
तेरे मिलने की उम्मीद पर बड़ा ऐतबार हैं
तलब ओ हसरत का खेल आहिस्ता बढ़ रहा
कोई पैगाम तो भेजों अगर तुमको प्यार हैं
रातों में चल रहा इक तेरे ख्वाबों का सिलसिला
दिल इन ख्वाबों को हकीकत बनानें कों तैयार हैं
जबरदस्ती से इश्क मांगना फितरत नहीं हमारी
बस बैठे तेरी यादों में यूं ही हम बेकरार हैं
तेरे जिस्म की कशिश से हम फ़िदा नहीं हुए
बस समझलो यूं कि सादगी ओ दिल पर तेरे हम निसार हैं
हर दिन यूं ही बीत जाता हैं तेरी यादों के संग
और ज़िंदगी में बन रहीं दर्दों की क़तार हैं
आज़ मिलते नहीं चाहने वालें आसानी से
हर कोई बस उम्मीदों की सफ़ीना पर सवार हैं
मिलें अगर प्यार करने वाला कोई तो खोना मत उसको
क्योंकी यहां मिलते नहीं फरिश्ते हज़ार हैं
दर-ब-दर यहां बैठें हैं झूठ का लिबास ओढ़े कई
उस झूठ के पीछे छुपा राज बेकार हैं
कुछ रिश्ते अहमियत के सबब से जुदा होते हैं
कुछ रिश्ते यहां गलतफहमियों के शिकार हैं
इकतरफा इश्क में सच्चाई होती हैं अक्सर
और दोतरफा इश्क़ में झूठे वादों के अधिकार हैं
जब हैसियत नहीं होती वफ़ा निभानें की जिनकी
फ़िर करते झूठे अश्कों और वादों के यलगार हैं
यूं ही कलम ली हाथों में और उतर गए ज़माने के मंज़र
जो भी रिश्ता बनें वो रूहानी हों,बस इसी के हम तलबगार हैं
क्यों देना अश्क किसी की आंखों में दगा से
जब बैठीं तेरी वफ़ा की उम्मीद पर करके वो श्रृंगार हैं
समझ लेना अंतर जिस्मानी हवस और प्यार में
फ़िर समझ आ जाएगा ज़िंदगी में मोहब्बत का क्या सार हैं
-उत्सव कुलदीप
© utsav kuldeep