...

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क़लम ए ख्यालात
इस नज़र को बस तेरा इंतज़ार हैं
तेरे मिलने की उम्मीद पर बड़ा ऐतबार हैं

तलब ओ हसरत का खेल आहिस्ता बढ़ रहा
कोई पैगाम तो भेजों अगर तुमको प्यार हैं

रातों में चल रहा इक तेरे ख्वाबों का सिलसिला
दिल इन ख्वाबों को हकीकत बनानें कों तैयार हैं

जबरदस्ती से इश्क मांगना फितरत नहीं हमारी
बस बैठे तेरी यादों में यूं ही हम बेकरार हैं

तेरे जिस्म की कशिश से हम फ़िदा नहीं हुए
बस समझलो यूं कि सादगी ओ दिल पर तेरे हम निसार हैं

हर दिन यूं ही बीत जाता हैं तेरी यादों के संग
और ज़िंदगी में बन रहीं दर्दों की क़तार हैं

आज़ मिलते नहीं चाहने वालें आसानी...