...

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मैं कहीं नहीं
इतना खो गया हु मैं
की मैं अपनो में भी नहीं
ना ही मैं हकीकत में
ना हु मैं सपनों में कही

एक भवर सी घुमती है दुनिया
बह रहा हु मैं भी उसमे कही
भीड़ का बन चुका हु कुछ हिस्सा इस तरह
अब कुछ अलग रहा नहीं

अब माँ नहीं गाती लोरी कोई
कितनी भी करू गलतियां
दाटने भी यहां है कोई नहीं

कोई दोस्त सा भी यहां लगता नहीं
एक आसू भी अब यहां बिकता नहीं
एक झूठ हसी चिपका कर
ले जा रही है जिंदगी कही
जैसे बिन मंजिल घूम रही हो
नाव कोई

गैरो की क्या बात करू
मैं अपनो में भी नहीं
कहा धुंड रहे हो सपनों में
मैं वहा पे भी मिलूंगा नहीं

© chetan