...

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खौफ़
लहरातीं चुल मचाती,
मस्तानी चीलों की सनसनी।
पेश है समक्ष आपके
इस नाचीज़ की ज़ुबानी।

वो लम्बी लम्बी उड़ाने,
क्या खूब तीखी नज़रें।
आसमान की राणियों के
कदी ना खत्म होने वाले नखरे।

एक से बढ़कर एक करतब ये दिखतीं,
हवा में ही कबूतर कैच कर लेतीं। लपक-लपक के फुल अय्याशी।
कंजर कहीं की सुन भी लें जो किसी की।

अम्बर की अटारी का बैनामा
ठोक चुकी हैं भई, वो भी चौड़े में।मजाल जो हुँकार भी भर दे कोई।
नोच खाएँगी नासपिटी कहीं की।

ना जानें कितनों की खाल उधेड़ी।
बोटियाँ-बोटोयाँ नोच डाली।
अजी क्या आरी और क्या ही कटारी,
कबूतरों की हवसखोर कहीं की।

पर वो कहते हैं ना,
गिर गिर के उठते हैं जो
वो कहलाते हैं विजेता।
तलवार की धार पे जो जीते हैं
वो होते हैं बेखौफ योद्धा।

फिर बाघ उतर आया यूँ ही भोरे भोर,
हलचल साली धड़कन बन के रुक गयी। समा खैफ़ का, नदी किनारे।

मिनट से पहले गायब हो गईं
उड़ानों की साख, वो भोकाल की चुल।

क्या हुआ चीलों? कैसे लय बिगड़ गयी? बाघ तो ज़मीन पर है, फिर तुम्हारी क्यों साँसे अटक गईं।

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© Kunba_The Hellish Vision Show