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श्रमिक वर्ग दिवस
अकेला श्रमिक
श्रमिक वर्ग का भूखा प्यासा,
चला जा रहा गांव को,
जूता है न चप्पल है,
झेले जा रहा छालों को,
शहर में उसका कोई न हुआ,
जब कोरोना का वार हुआ,
पुरानी टूटी झोपङ वास्ते,
चला जा रहा गाँव को,
काम बंद मजदूरी बंद,
परिवार सड़क पर आन पड़ा,
पथिक बन कर रह गया,
कोई न उसका अपना हुआ,
न सर पर छत है न उदर में दाना,
बस नीचे तपती धरती ऊपर आसमां,
छाँव का कहीं नाम न होता,
श्रमिक ढोता जा रहा तसला,
फटी धोती सर पर पगड़ी,
दो समय की रोटी वास्ते,
चेहरे पर हँसी का नकाब ओढ़े,
चला जा रहा मजदूरी को,
यूँ तो अमीरों का बोलबाला है,
पर कोई न देता गरीबों को निवाला है,
परिवार का पेट पालने वास्ते,
चला जा रहा गाँव को।
© hemasinha
श्रमिक वर्ग का भूखा प्यासा,
चला जा रहा गांव को,
जूता है न चप्पल है,
झेले जा रहा छालों को,
शहर में उसका कोई न हुआ,
जब कोरोना का वार हुआ,
पुरानी टूटी झोपङ वास्ते,
चला जा रहा गाँव को,
काम बंद मजदूरी बंद,
परिवार सड़क पर आन पड़ा,
पथिक बन कर रह गया,
कोई न उसका अपना हुआ,
न सर पर छत है न उदर में दाना,
बस नीचे तपती धरती ऊपर आसमां,
छाँव का कहीं नाम न होता,
श्रमिक ढोता जा रहा तसला,
फटी धोती सर पर पगड़ी,
दो समय की रोटी वास्ते,
चेहरे पर हँसी का नकाब ओढ़े,
चला जा रहा मजदूरी को,
यूँ तो अमीरों का बोलबाला है,
पर कोई न देता गरीबों को निवाला है,
परिवार का पेट पालने वास्ते,
चला जा रहा गाँव को।
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