...

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तो क्या होगा...?
यह तो माना, इस बसंत में
तुमको नहीं जरुरत मेरी,
पर पतझड़ के आने पर
मैं न रहूंगा जब,तब क्या होगा,
क्या तृप्ति, तृप्ति तो केवल
नकली आंख मिचौनी सी है
इसे जीवन का सार न समझो
बात बड़ी अनहोनी सी है,
ये तो माना चरण तुम्हारे
फूलों के चादर पर है,
मंदिर के प्रतिमा पर जब
पुष्प न होंगे तब,
तब क्या होगा....!