...

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बेटी
                                  
पैदा  हुई तो नर्स ने उसे धीरे से गोदी में उठाया ,
जोर से चिल्लाया, "बधाई हो जी, बेटी हुई है!"

यह बात सुनकर उसके माँ-बाप का चेहरा
खुशी से झूमता नजर आया ,
फिर कई सवालों का भूचाल उनके मन में समाया,
समाज के रीति- रिवाजो के बोझ के नीचे
बेटी होने की खुशी का वह क्षण दबता नजर आया।
क्या इतनी बुरी हु मैं । 🥺

आचानक कहीं दूर से शोर आया, सभी
रिश्तेदारों के तानों ने माँ- बाबा को खूब सताया ,
"देर रात तक कौन इसकी सुरक्षा करेगा?
कौन 24 घंटे इसके साथ रहेगा?
कौन इसे बुरी नीयत से बचाएगा?
इतना दहेज कहाँ से लाएगा?
इसकी क्या गारंटी है कि दूसरे घर जाने पर इसे कोई नहीं सताएगा?"क्या इतनी बुरी हूँ मैं?


जन्म होते ही सवालों के ढेरों तले दबी हु मैं?
कुछ भी हो सभी सवालों से लडी हु मैं ,
क्योंकि अपने मम्मी पापा कि परी हु मैं।।

वैसे तो बात - बात पर डरी हु मैं
लेकिन फिर भी आखिर क्यूँ  इतनी बुरी हु मैं।।

मैं क्यों बुरी हूँ?
मैं क्यों कम हूँ?
मैं क्यों नहीं हूँ वो,
जो समाज के रीति-रिवाजों को पूरा करूँ?

लेकिन मैं नहीं हूँ कम,
मैं नहीं हूँ बुरी,
मैं हूँ तो प्यार,
मैं हूँ तो खुशी।।

मैं अपने मम्मी पापा की परी हूँ,
मैं उनकी खुशी की बरकत हूँ,
मैं उनके सपनों की उड़ान हूँ,
मैं उनके जीवन की आस हूँ।

मैं नहीं हूँ बोझ,
मैं नहीं हूँ बुरी,
मैं हूँ तो सशक्त,
मैं हूँ तो स्वतंत्र।

मैं अपने जीवन को अपने तरीके से जीती हूँ,
मैं अपने सपनों को अपने दम पर पूरा करती हूँ,
मैं अपने समाज को बदलने की ताकत रखती हूँ,
मैं अपने देश को आगे बढ़ाने की आस रखती हूँ।

क्या इतनी बुरी हूँ मैं?
नहीं, मैं नहीं हूँ बुरी,
मैं हूँ तो प्यार,
मैं हूँ तो खुशी।💕💕