...

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कविताओं का इतवार
हर दफा जहन में उथल-पुथल मचा जाते हैं ये आधे-अधूरे शब्द,

जाने कब से कविताएं...अपने हिस्से का इतवार ढूंढ रही हैं,,

लिख तो डाले ज़िंदगी के कई किस्से इन बेजुबान कविताओं ने,

शायद ये अब अनसुलझी पहेलियाॅं,बची कुची कहानियाॅं टटोल रही हैं।।


© manjul sabdawali
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