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पत्ती का अनंत सफर
#हवामेंपत्ती

गिरी हुई पत्ती, शाख से बिछड़ी,
हवा की बाहों में चुपचाप सिमटी,
दुनिया की राहों पर बेख़बर चली,
जैसे कोई बंजारा अनंत को गले लगा चला।

हवा कभी उसे ऊपर उठाती,
तो कभी धरती के आँचल में सुलाती,
वह न तो ठहरती, न कोई गिला करती,
बस मंज़िलों से अनजान, सफ़र को अपना मान चली।

हर मोड़, हर दिशा में बहती,
जैसे जीवन की धारा हर पल बदलती,
वह जानती है, ठहराव नहीं उसका मुकाम,
क्योंकि सफ़र ही उसका असली नाम।

वह पत्ती, जो कभी वृक्ष की जान थी,
अब हवा की सहेली, धरती की पहचान थी,
उसके हर गिरने में छिपा एक नया अरमान था,
क्योंकि हर बिखराव में ही नए पंखों का निर्माण था।

फिर चाहे वो कहीं भी जाए,
धरती, आकाश, या समंदर का किनारा पाए,
वह बस मुस्कुराती, हर हाल में जीती,
क्योंकि गिरने के बाद भी, वो कभी नहीं रुकती।।

© rajib1603