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माज़ी की धूल झाड़ दे
मन के आईने से माज़ी का धूल झाड़ दे,
देती है जो हर वक्त तकलीफ़ बेशुमार तुझे,
उन कड़वी और बुरी अतीत की यादों को
चल अब आज तू अपने जेहन से निकाल दे।
बांहें फैलाये तेरे सामने खड़ी है जो खुशियाँ,
उन्हें अपने गले से लगाकर खुबसुरती - से
अपनी जिंदगी चल अब आज से तू संवार ले,
मन के आईने से माज़ी का धूल झाड़ दे।
———————————————
👉👉अक्सर हमारे मन का आईना माज़ी की धूल से अटा पड़ा होता है और हम उसे साफ़ करने की ज़हमत तक नहीं उठाते।इसलिए हमें अपनी जिंदगी में आ रही नयी खुशियों के स्वागत करने के लिए अपने मन के आईने से माज़ी का धूल झाड़ना आवश्यक हो जाता है। 👈👈
— Arti Kumari Athghara (Moon) ✍✍
© All Rights Reserved
देती है जो हर वक्त तकलीफ़ बेशुमार तुझे,
उन कड़वी और बुरी अतीत की यादों को
चल अब आज तू अपने जेहन से निकाल दे।
बांहें फैलाये तेरे सामने खड़ी है जो खुशियाँ,
उन्हें अपने गले से लगाकर खुबसुरती - से
अपनी जिंदगी चल अब आज से तू संवार ले,
मन के आईने से माज़ी का धूल झाड़ दे।
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👉👉अक्सर हमारे मन का आईना माज़ी की धूल से अटा पड़ा होता है और हम उसे साफ़ करने की ज़हमत तक नहीं उठाते।इसलिए हमें अपनी जिंदगी में आ रही नयी खुशियों के स्वागत करने के लिए अपने मन के आईने से माज़ी का धूल झाड़ना आवश्यक हो जाता है। 👈👈
— Arti Kumari Athghara (Moon) ✍✍
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