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पुकार
पुकार
जला दो फूँक दो उन किताबों के साए
जो दे नहीं पाती किसीको सही राहें
तोड़ दो उन रिवाज़ों की बेड़ी
जिन्हें अपना ही नहीं पाती नए ज़माने की पीढ़ी
बुझादो उन चिरागों को जो फैलाए अँधेरा
उत्तार फेंको वो नकाब जो छिपा लेता है तुम्हारा मन का चेहरा
दिखा दो सच सभी को के इंसान ही हो तुम नहीं कोई फरिश्ता
समय के साथ अच्छाइयों का होता नहीं है वास्ता
बिखर जानेदो उन सबको जो कांपे है सचसे
जला आते है तुमको तुम्हारे ही तो रिश्ते
© khush rang rina
जला दो फूँक दो उन किताबों के साए
जो दे नहीं पाती किसीको सही राहें
तोड़ दो उन रिवाज़ों की बेड़ी
जिन्हें अपना ही नहीं पाती नए ज़माने की पीढ़ी
बुझादो उन चिरागों को जो फैलाए अँधेरा
उत्तार फेंको वो नकाब जो छिपा लेता है तुम्हारा मन का चेहरा
दिखा दो सच सभी को के इंसान ही हो तुम नहीं कोई फरिश्ता
समय के साथ अच्छाइयों का होता नहीं है वास्ता
बिखर जानेदो उन सबको जो कांपे है सचसे
जला आते है तुमको तुम्हारे ही तो रिश्ते
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