...

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“ये कोई उम्र है क्या, फंदे को नापने की मेरी?"
क्या उसरत है, न जाने, मुकद्दर में मेरे,
कोई फायदा ही ना रहा, वेमुरव्वत से मेरे...

पाने के दौर में, खोने की हद करदी, हमने,
खामोशी के सिवा, कुछ नही दामन में मेरे...

मताए-जां, ये नजरों से, नजरों में क्या होता है ?
क्या मरते नहीं लोग, सूरमे से तेरे ?

चल किए सभी माफ, गिले- सिकवे तेरे,
अब कोई आग सीने में, बची तो नही तेरे...

क्यूं हलकान करती हो, खुद को मुझे, अपना बताकर ?
क्यूं नजर नही आती, चेहरे पे उदासी तेरे ?

ऐ-परछाई तू सदा, बफादार रही मेरे,
ये गुनाह होगा, अगर तू दफन होगी, साथ मेरे...

ये कोई उम्र है क्या, फंदे को, नापने की मेरी ?
इश्क गले ही पड़ गया, कपिल वेबात तेरे....


© #Kapilsaini