“ये कोई उम्र है क्या, फंदे को नापने की मेरी?"
क्या उसरत है, न जाने, मुकद्दर में मेरे,
कोई फायदा ही ना रहा, वेमुरव्वत से मेरे...
पाने के दौर में, खोने की हद करदी, हमने,
खामोशी के सिवा, कुछ नही दामन में मेरे...
मताए-जां, ये नजरों से, नजरों में क्या होता है ?
क्या मरते नहीं...
कोई फायदा ही ना रहा, वेमुरव्वत से मेरे...
पाने के दौर में, खोने की हद करदी, हमने,
खामोशी के सिवा, कुछ नही दामन में मेरे...
मताए-जां, ये नजरों से, नजरों में क्या होता है ?
क्या मरते नहीं...