...

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सफ़र और तुम
तुम मेरे साथ ये सफर
पूरा कर सकोगे क्या?
हर मोड़ पर मेरे हमराही
बनकर चल सकोगे क्या?

राह कठिन है, कांटे भी हैं,
तुम मुस्कुरा सकोगे क्या?
अंधेरों में भी मेरे साथी
दीपक जैसे जल सकोगे क्या?

ख्वाब अधूरे, सपने धुंधले,
साथ में बुन सकोगे क्या?
हर ग़म, हर ख़ुशी का हिस्सेदार
सच में बन सकोगे क्या?

वक्त की आंधी, हालात के तूफान,
झेल सकोगे मेरे साथ?
इस बेनाम सफर में भी तुम
मेरे साथ रह सकोगे क्या?

अगर हाँ कहो, तो चल पड़ें हम,
इस अनजानी डगर पर।
खामोशी की जुबां से कह दो,
क्या चल सकोगे तुम इस सफर पर?

© rajib1603