...

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चाँद !
चाँद ।

आसमान में एक वो
जिसे लोग चाँद कहकर पुकारते हैं ,
कुछ छुपकर निहारते हैं ,
तो
कुछ अपने आँसूओं का आलम जिसे सुनाते हैं ।

चाँद कहते हैं
उस बदलते हुए रोशनी के गोले को ,
जो कुछ को अकेला नज़र आता हैं
तो
कुछ को चारों तरफ से तारों से घिरा हुआ नज़र आता हैं ।

चाँद कहते है उसे
जिसे अंधेरें में भी रोशनी का साथ निभाना आता हैं ,
जिसे देखकर लोगों को किसी खास तक अपनी अनकही बाते पहुँचाना आता हैं ।

चाँद कहते हैं उसे
जिसे मायूसी का कफ़न ओढना नहीं आता है
जिसे साथी सितारों का हक चुराना नहीं आता हैं ।

ए-चाँद ,
इतनी उचाई पर भी इतनी उदारता
कहाँ से लाते हो ,
शायद वहीं पर अपना सारा ग़म भूल आते हो ,
शायद वहीं पर अपनी रोशनी का राज़ छुपाते हो ,
बताओं न चाँद इतना बडा़ दिल कहाँ से लाते हो !


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