ज़िन्दगी
ज़िन्दगी ने बैर हमसे इस कदर मोल लिया,
कि मौत भी अच्छी लगती है सुलह कराने को।
मुद्दत हो गई इस आग में जलते जलते,
की आग भी चली आई इस आग बुझाने को।
ख्वाब सदियों के,ख्वाहिश महलो की,
आखिर दो गज जमीन ही मिली खुदी दफनाने को।
मै समझता था हसीन इसे,वफा की बेशुमार,
कोई रब्बी ना मिला इसके जूठ बताने को।
© STOIC
कि मौत भी अच्छी लगती है सुलह कराने को।
मुद्दत हो गई इस आग में जलते जलते,
की आग भी चली आई इस आग बुझाने को।
ख्वाब सदियों के,ख्वाहिश महलो की,
आखिर दो गज जमीन ही मिली खुदी दफनाने को।
मै समझता था हसीन इसे,वफा की बेशुमार,
कोई रब्बी ना मिला इसके जूठ बताने को।
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