...

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फुर्सत नही
एक समय वो भी था,
जब हम कहते थे!
हे भगवान दिन लंबे और बडे़ कर दे,
ताकि काम ज्यादा हो।
अब कहते है !
हे भगवान राते लंबी और बडी़ कर दे,
ताकि अराम ज्यादा हो।
पहले खेलने से फुर्सत नही मिलती थी,
और आज कमाने से फुर्सत नही मिलती।
जिंदगी इतनी रफ्फतार से चल रही है,
कि अब खुद से रूबरू होने तक का फुर्सत नही,
हम इतने ज्यादा वस्त है,
कि कहते मेरे पास खुद के लिए भी फुर्सत नही।