...

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आईना
एक दिन खुद को आईने के सामने खड़ा देखा,
नज़रें मिलीं, छोटी सी हँसी और,
बहते आँसूओ ने चेहरे को घेरा।

आईने ने हस कर कहा,
क्या तुम ठीक हो,
क्या तुम खुश हो,
काफी बदल गयी तुम,
क्या खुद से नाराज हो,
जो जिंदगी में चाहा क्या तुम,
उसे पाने की राह पर हो?

कितने साथी बचे, जो साथ हैं तुम्हारें,
कितने वादें निभायें, जो तुमने किये खुद से,
क्यों तुम ठीक से सोती नहीं हो क्या,
तुम्हारी आँखों मे वो चमक नहीं रहीं,
क्यों अक्सर रातों में रोती हो क्या?

अभी भी ख्वावों की महफ़िल बनाती हो क्या,
उन राजा और रानियों की कहानियों को सुनकर खुद को सुलाती हो क्या?
अभी भी तुम्हें लगता हैं क्या,
कि सब खूबसूरत हैं,
तो उस खूबसूरत दुनिया में अभी भी,
खुद को बदसूरत बताती हो क्या?

अभी भी किसी की यादों में खुद को भूल जाती हो क्या,
अभी भी किसी के लिए राह निहारती हो क्या?
क्या अभी भी तुम में वो मासूमियत बची हैं,
तो दूसरों के चेहरे पर मुस्कान लाती हो क्या?

क्या तुम सच में समझदार हो गयी हो,
तो गैरों की बातों को अभी भी दिल पर लगाती हो क्या?
क्या तुम खुद के गमों को छुपाने लगी हो,
रोने की जगह खुद को लोगो के सामने हँसाने लगी हो क्या?

तुम खुद को बदलने जा रही हो क्या,
लगता है तुम,पुरानी खुद को मिटाने जा रही हो?
एक छोटी सी झलक ने जिंदगी के सारे पन्ने खोल दिये,
हम दुनिया से खुद को झुपाने जा रहे थे और देखो,
हमारे अक्स ने ही लाखों राज खोल दिये।

© shivika chaudhary