...

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प्रेम का इत्र लगाकर
अंग-अंग उत्तेजित कर दिया है आगोश में आकर।
मेरी महफ़िल महका दिया है तुमने इत्र लगाकर।

बेजान, 'पागल' पड़ा था तेरी राहों में मुंतज़िर बन,
मगर जान डाल दिया तुमने मेरी रुह में समाकर।

माना कि रात के अभिसार से तुम्हें डर लगता है,
क्षितिज में मिलन होगा तुम बनो धरा, मैं दिवाकर।

बहुत हो चुकी लुका-छिपी बादलों की ओट से,
कभी तो आओ मेरी कुर्ब़त में, ना भागो शर्माकर।

मोम की तरह पिघल रही है मेरी रुह-ओ-बदन,
रख लो मुझे अपने दिल के कोने में जमाकर।

© पी के 'पागल'