...

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मेरी मां...
क्या लिखूं मैं उस मां के बारे में जो नादान थी
बनी थी जब पहली बार मेरी मां,महज 16 साल थी
दुनियां के रीत रिवाजों से वह अंजान थी
ज़रूरत थी उसे संभालने की, उसने घर संभाला था
पूरा इलाका बताता है मुझे,
उसने बड़े नाजो से पाला था
""कोई हाथ नही लगाएगा मेरी बच्ची को "
ये कहकर पूरी दुनिया से वह लड़ जाती थी
एक मां ही तो है जो थाली का भी खिलाती थी बच्चो के साथ वह बच्ची बन जाती थी
खुली आंखों से हर रोज चांद तक जाने के सपने मुझे दिखाती थी
अपनी गोदी में ही पूरा संसार घुमाती थी
कौन कहता है मां ने सिर्फ 9 महीने पेट में रखा है
मेरे चलने से बोलने तक, गिरने से सभलने तक
हर दिन मैंने उसकी गोदी में सर रखा है
और क्या उपमा करू मैं उसकी
जिसने भगवानों को भी पाला है
सही कहते है लोग ..........
उसके चरणों में मंदिर मंजिद और सिवाला है..... लव यू मम्मा...
हैप्पी मदर्स डे मम्मा....
© अनामिका आजाद