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अन्नदाता पर मौसम का कहर 😥


बेमौसम बारिश में सिर्फ बादल ही नहीं
किसी की आँखों से भी पानी बरसा है,
चमकती चपला संग आसमाँ ही नहीं
किसी का हृदय भी चित्कारों से गरज़ा है।

तेज तर्रार तूफ़ान में सिर्फ ओले ही नहीं
किसी की खुशियां भी उड़ी है,
आखिर क्यों विधाता!अन्नदाता
की किस्मत क्यों ग़मों से जुड़ी है।

पानी से लबालब भरे खेतों में अनाज
बिखर कर दुःखों की ढाल बह गया,
बस किसान की उम्मीदे, सपने, मेहनत
कर्ज, सूद और वो साल रह गया।

बिटिया बड़ी हो गई उसकी शादी भी तो करनी है,
अरे! उस बनिये की किश्त भी तो भरनी है।

उसके सारे ख्वाब बस ख्वाब ही बन कर रह गए,
पत्थराई बुढ़ी आँखों के झरने सैलाब बन कर बह गए।

फिर हुआ राजनीति का खेल मुआवजे,
कर्ज माफी का ढोंग चला है,
पहले कुदरत ने अब भ्रष्टाचार और राजनीति
ने छला है।

हर परिस्थियों में लड़ने वाला अन्नदाता
मौसम और भ्रष्ट राजनीति से हार गया,
आखिर कौन हत्यारा है इनका, कौन
इनको बेमौत मार गया।

दो शब्द किसान के लिए :-
जो खुद भूखा रह कर करोडों पेट भरता है,
आखिर वो ही क्यों इस कदर बेमौत मरता है।

जय अन्नदाता, जय किसान 🙏

चेतन घणावत स.मा.
साखी साहित्यिक मंच, राजस्थान
© Mchet043