...

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सफर

यू तो कुछ खास हम में भी नहीं
बस कलम उठाई और चल पड़े
सफ़र में बिल्कुल अकेले से थे
अँधेरा हुआ तो डरने लगे
आँखों को कम दिखने लगा और,
मेरे कदम तो मानो मुझसे ही नफ़रमानी करने लगे

मैने खुद को झंझोरा
कहा अभी मंजिल नहीं मिली और तुम सोने लगे?
पर कैसे समझाती इन दोनों को
दिल और दिमाग आपस में लड़ने लगे
एक कहता कि रुक ​​जाओ तो दूसरा कहता अभी चलना है
ऐसा लगा मानो ये तीसरा विश्व युद्ध करने लगे

बिना रोके ये लडाई ना थमती
तो ये बेड़ा भी मैंने ही अपने सर लिया
मैंने पूछा दिल से 'बता क्या लिखना है'
कुछ है भी लिखने को या सारी रात बस यू ही जगना है
कहने लगा मुझसे पूछती क्यों है
जो तेरा दिमाग कहेगा तुझे तो वही करना है

पर एक बार मेरी सुन के तो देख
जीने का मजा आने लगेगा
अरे जो मुझमें भर के रखा है
वो कलम को बता के तो देख
लिखने का मजा आने लगेगा
लिख जो तेरी ख्वाहिशें हैं,
जो तेरे सपने है और
जो तेरी फरमाइशें हैं

अब कुछ समझी तो जवाब दे
या बस यू ही सुनती रहेगी
कुछ सोचा है तो मुझे भी बता
या मन ही मन में बुनती रहेगी

दिल की बाते सुन कर अच्छा लगा
मेरे डर झूठे और दिल सच्चा लगा

फिर मैंने खुद से ढेर सारी बातें की
कुछ कुछ दिल में रहने दी
बाकी सब कलम को बता दी
मैं जैसी जैसी बातें बताती
सूरज की किरण मेरे करीब चली आती
पहले एक, फिर दूसरी, फिर तीसरी
मानो जैसे इन्हें भी मेरे किस्सो में दिलचस्पी है

बाते करते करते कब सवेरा हो गया
ये जान ही ना पाई
एक नई सी सुबह है, मेरी कलम और पन्नो पे लिखे ढेरो किस्सों के साथ
दोबारा निकल पड़ी एक नये सफर की ओर
बस मेरे नये जज़्बे और वही पुरानी कलम के साथ