...

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निश्चित
जब हर ओर विपत्ति बढ़ जाये,
संसार नज़र जब ना आये,
तुम ना समझो अन्धेर है ये,
बस समझो समय का फेर है ये,

है ये वो, जो सब पर ही आता है,
ना चाहा जो, दिखलाता है,
दिन जाने? इसमें कितने होते है?
पर कुछ हँसते है, कुछ रोते है,

तुम ना समझो कुछ नया है ये
ये सब पहले से निश्चित था,
ये बस बिरह का खेल है एक
जो जन्मपूर्व शुनिश्चित था,

हाँ, निश्चित था वो चोट नया
जो अपनो से ही मिला तुम्हे,
हाँ, निश्चित थे वो ठोकर भी
जो अपनो ने ही दिया...