...

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तेरे आने से........
तुझ से मिलन की चाह में
परिवर्तित हो रहे भावो के संकेत

घिरी थी उदासी के कानन में, मलिन फीकी सी हंसी लिए
ज्ञानेंद्रिय थी संज्ञाशून्य,ना कोई थे अहसास, ना जज़्बात
जब से ..........
एक कदम मिलने का तेरी और बढ़ाया है
अब मुझे सुनाई देती है हर समय, हर पल
धीमी और फूलों के बहुत पास से आती हुई झिलमिल हँसी

दुनिया के कोलाहल में,एकम एकल अहसास से लिपटी हुई
संवेदनहीन,निर्विकार,विरक्ति के कोकून में लिपटी हुई
जब से ...........
एक कदम मिलने का तेरी और बढ़ाया है
चल पड़ा प्रणव सिंधु में ज्वार का अनवरत सिलसिला
सुकून की चादर ओढ़, हृदय में मधुर मुस्कान सी छाई है

तिलस्मी खोह में गिरफ़्तार थे मेरी भावनाओ का अंबार
जीवन घोर अंधेरे में ,दबी हुई थी स्वर-स्वप्न-तरंगें गंभीर,
जब से ........
एक कदम मिलने का तेरी और बढ़ाया है
अंबर के आनन में चमक उठे, असंख्य झिलमिलाते तारे
खुल गए सीपी से मोती,स्वप्न-सज्जित प्यार देखो सज गया

खड़ी थी चौखट पर तेरे इंतजार में
पूर्ण थी मन की झोली अवसादो के भाव से
जब से .........
एक कदम मिलने का तेरी और बढ़ाया है
हीलियम गुब्बारा की तरह हल्की हो मैं
बढ़ गई आसमान की ओर ,तुझ से मिलन के सफ़र में
जब से ........
उसने ऋत्विजा कह कर पुकार लिया ....
जीवन के उसने सही अर्थ समझा दिए.......
#ज्ञानेंद्रिय_थी_संज्ञाशून्य
#मिलन_के_सफ़र
#अवसादो_के_भाव
#तिलस्मी_खोह
#सीपी_से_मोती
#प्रणव_सिंधु
#अंबर_के_आनन
#दुनिया_के_कोलाहल

© ऋत्विजा