...

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दुश्वारियाँ
नहीं है ख़बर तुमको ज़रा भी हमारी।
जिंदगी हादसों में उलझी हुई है हमारी।

राहे उल्फ़त में हम ठोकरें ही खाते रहे।
मोहब्बत में ग़मों का बोझ ही ढ़ोते रहे।

कभी तो...