...

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दृष्टि..,
अगर आपको इस दुनियां में या ख़ुद में कुछ कमी लगती है तो सही में आप प्रभू की दी हुई इस ज़िन्दगी के योग्य नहीं हो,

कुछ भी कहीं भी किसी में भी बुरा नहीं है सब आपकी दृष्टि का ही खेल है
आप अपनी नज़रों के अनुरूप हर चीज़ का अपने मन में एक छवि का निर्माण कर लेते हो..,

आपकी दृष्टि आपके मन के भाव तय करती है औऱ वो भाव ही आपके चरित्र का निर्माता है,

दुनियां तो सुंदर है ही औऱ इंसान उस रब की उससे भी अधिक एक ख़ूबसूरत रचना,

...बस यह आपकी दृष्टि ही आपके दुःख-सुख हँसी-खुशी की रचयिता है,

प्रेम ईष्या दुएश करुणा सब आपकी दृष्टि का दूसरा प्रतिरूप है

इसलिए हर शै के प्रति अपनी दृष्टि पाक रखिये..,

रब दिखेगा तो नहीं पऱ किसी ना किसी में महसूस जरूर होगा!
© बस_यूँही