...

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मेरे प्रभूजी, आप सब जानते हैं।
प्रणाम प्रभूजी,
बाहर तुम,भीतर तुम,
जो ठहर जाऊँ आपमें,
तो अनंत आनन्द को पाऊँ,
जो चल दूँ, संग-संग आपके..,
तो मंगलमय हो जाऊँ...
जो भागूँ ..आपसे दूर,आपकी माया संग...
तो कहिये ना, प्रभूजी.. मैं कहाँ तक जाऊँ...
आप सामने हीं, मिलते हैं.. इस खेल खेल में..
आप ही आप हैं, हर जगह...
हर रूप में...
जब ज़माने की और देखते हैं,
तो साँस - साँस की तड़प हैं, आप...
जो मन में देखूँ.. तो मेरा रोशन मन्दिर,
मेरा सर्वस्व हैं, आप,
आप से ही ये चेतना,
आपसे हि जागना..
आप संग ही खेलना..
आपसे ही साधना...
ओ प्रभूजी...
आपसे ही भक्ति भाव,
आपकी ही कामना..
बलिहार जाएं ऐसे सुंदर प्रभूजी पर..
रोशन...