...

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जरा सा:रखा रह गया प्यार
बस रह गया।
अब ये नया भी अकेला सा।
खड़ी हैं दास मीनारो सी,
जानो फिर भी रह गयी आस,कुम्हारों सी।
अकेला ये मंजर जर सा हैं,
अब मीनारो का मूल इसी समझ का।
सराहा था हमने भी खुद को,
कि मेंरा प्रेम असंख्य सा,
जाने क्यूँ अब ये मन एकाकी सा।
अधूरे को पूरा करने की बात नहीं,
जो पूरा था वो अब अधूरा सा।
उस पूरे सार का कर बस मैं थी,
अब इस कर नि:शेष के सारांश में,
मैं कुछ भूला सा।

© 🍁frame of mìnd🍁