यहाँ नही..।।
कौन करे यकीं मुहब्बत मे अब यहाँ..,
कि फर्क अब इश्क और हवस मे नहीं..,
जलता है परवाना ख्वाहिश-ए-इश्क मे अपनी..,
कि अब कौन बताये रौशनी उसके बस मे नहीं..,
बिखरी हैं खुशियाँ बेआबरू सी महलों मे यहाँ..,
कि ऐसा कोई जुल्म तो...
कि फर्क अब इश्क और हवस मे नहीं..,
जलता है परवाना ख्वाहिश-ए-इश्क मे अपनी..,
कि अब कौन बताये रौशनी उसके बस मे नहीं..,
बिखरी हैं खुशियाँ बेआबरू सी महलों मे यहाँ..,
कि ऐसा कोई जुल्म तो...