मन की उलझन
#तूफानीयात्रा
नित उठ रही मन में उर्मी शांत करूँ कैसे
चिंता रूपी तरणी तैर रही पार लगाऊं कैसे ।
माझी बन बैठा हृदय, दोनों हाथ लिए पतवार असमंजस में देख रहा ज्वारभाटों का संसार ।
वृत्ताकार सा घूम रहा मिला ना उसको ठौर
आदि ही अन्त बना, पल पल हुआ कमजोर ।
...
नित उठ रही मन में उर्मी शांत करूँ कैसे
चिंता रूपी तरणी तैर रही पार लगाऊं कैसे ।
माझी बन बैठा हृदय, दोनों हाथ लिए पतवार असमंजस में देख रहा ज्वारभाटों का संसार ।
वृत्ताकार सा घूम रहा मिला ना उसको ठौर
आदि ही अन्त बना, पल पल हुआ कमजोर ।
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