...

41 views

तलाश ए मोहब्बत...
ढूंढने निकले हम अपनी मोहब्बत का आशियाना,
मगर हुआ क्या!,
मिला मुझे बेरहमों का नगर।
आसरा न किसी सहारे का न ही किनारे का,
बस जुस्तजू ए इश्क में खोए चलता गया,,
मगर कहूं क्या!,
मुकर्रर नसीब हुआ मुझे बस नफरती नजर।।
सोचा था मिल उससे इजहार ए इश्क करूंगा,
खोल पिटारा चाहतों का उसके सम्मुख कहूंगा,,
मगर करूं क्या!,
टूट पड़ा मुझ पर ही जख्मों का कहर।।
मेरे जर्रे जर्रे में हसरतें प्यार की समाई है,
निगाहों को आस उसके मिलने के इंतजार में लगाई है,,
मगर क्या सुनाऊं!,
मुनासिब भी न हुआ उनके नशीली आंखों का कहर।।
समेटे हर एक ख्वाबों को मैं,
भटकता रहा बस भटकता रहा,,
ज्वाला बन इश्क दिल में,
धधकता रहा बस धधकता रहा।
आगे पूछो हुआ क्या!,
क्या बताऊं,
बताने को बचा क्या?।
मायूस हो अंत में,
लौट आया मैं अपने शहर।।।
written by (संतोष वर्मा)
आजमगढ़ वाले खुद की जुबानी..