काग़ज़ के टुकड़े
काग़ज़ के टुकड़े जैसे बिखरकर रह गया
तक़दीर मेरा भी कुछ यूँ मुकरकर रह गया
कितना झेलू मैं इस जुल्म-ओ-सितम को
ये दिल मेरा अब तो यूँ ही टूटकर रह गया
चाहा था...
तक़दीर मेरा भी कुछ यूँ मुकरकर रह गया
कितना झेलू मैं इस जुल्म-ओ-सितम को
ये दिल मेरा अब तो यूँ ही टूटकर रह गया
चाहा था...