सुलगता जिस्म
जिस्म सुलगता है तेरा, जैसे
Chulhe पे rakhi कोई batuhi.
आग अंदर है बहुत मगर,
जानता कोई जैसे है ही नहीं.
देख ने वाले देख लेते हैं कभी,
दर्द किसी ने नहीं लेकिन समझा है कभी.
जिस्म सुलगता है उस का भी अभी,
कि सर्द की रात है वो भी तन्हा होगी.
ख्वाब मे तकिया ही सहारा था, वक़्त
देख लो कैसे दो premiyo को मारा था.
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Chulhe पे rakhi कोई batuhi.
आग अंदर है बहुत मगर,
जानता कोई जैसे है ही नहीं.
देख ने वाले देख लेते हैं कभी,
दर्द किसी ने नहीं लेकिन समझा है कभी.
जिस्म सुलगता है उस का भी अभी,
कि सर्द की रात है वो भी तन्हा होगी.
ख्वाब मे तकिया ही सहारा था, वक़्त
देख लो कैसे दो premiyo को मारा था.
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