वर्षा ऋतु की एक शाम
अपनी खिड़की में बैठकर
अविरत हो रही वर्षा को तकता हूं
कुछ विस्मृत हो मन ही मन विचरता हूं !
इतना जल बादल कहां से लें आते हैं !
इतने हल्के से बादल इतना भारी
भरकम बोझ कैसे उठाते हैं ?
वर्षा ने जोर पकड़ा है और
भारी बारिश के साथ जोरों
की ध्वनि भी प्रतिध्वनित होती है
पर न जाने क्यों वह शोर की...
अविरत हो रही वर्षा को तकता हूं
कुछ विस्मृत हो मन ही मन विचरता हूं !
इतना जल बादल कहां से लें आते हैं !
इतने हल्के से बादल इतना भारी
भरकम बोझ कैसे उठाते हैं ?
वर्षा ने जोर पकड़ा है और
भारी बारिश के साथ जोरों
की ध्वनि भी प्रतिध्वनित होती है
पर न जाने क्यों वह शोर की...